indramani badoni ji par nibandh

indramani badoni ji par nibandh |इंद्रमणि बडोनी निबंध PDF

indramani badoni Par nibandh

इंद्रमणि बडोनी का जीवन परिचय
“इंद्रमणि बडोनी (उत्तराखंड के गांधी जीवनी : इंद्रमणि बडोनी (Indramani Badoni) का जन्म 24 दिसम्बर 1925 कं तत्कालीन टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गाँव में हुआ था। इंद्रमणि बडोनी के पिता का नाम पं. सुरेशानन्द बडोनी था ।कुमाऊं का चाणक्य किसे कहा जाता है
पहाड़ का गांधी किसे कहा जाता है
उत्तराखंड का गांधी किसे कहा जाता है
इंद्रमणि बडोनी का जन्म कब हुआ था
इंद्रमणि बडोनी पर निबंध pdf
इंद्रमणि बडोनी का जीवन परिचय

indramani badoni drawing, image

indramani badoni essay in hindi and English PDF

इन्द्रमणि बडोनी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई और अपनी माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए नैनीताल और देहरादून चले गये । शिक्षा प्राप्ति के बाद अल्पायु 19 वर्ष में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया। बडोनी, डी ए वी कॉलेज देहरादून से स्नातक की डिग्री लेने के बाद आजीविका की तलाश में बम्बई चले गये। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह  इन्द्रमणि बडोनी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही
हुई और अपनी माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए नैनीताल और देहरादून चले गये । शिक्षा प्राप्ति के बाद अल्पायु 19 वर्ष में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया। बडोनी, डी ए वी कॉलेज देहरादून से स्नातक की डिग्री लेने के बाद आजीविका की तलाश में बम्बई चले गये। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह इन्द्रमणि बडोनी सामाजिक कार्यों में तन-मन से
समर्पित हुए।

Eassy on indramani badoni

1961 में वे गाँव के प्रधान बने और फिर जखोली विकास खंड के प्रमुख । बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देव प्रयाग क्षेत्र का
प्रतिनिधित्व किया। 1977 के विधान सभा चुनाव में निर्दलीय लड़ते हुए उन्होंने कांग्रेस और जनता पार्टी प्रत्याशियों की जमानतें जब्त करवायीं । पर्वतीय   विकास परिषद के वे उपाध्यक्ष रहे। वे सड़क, शिक्षा,
स्वास्थ्य, बिजली और पेयजल योजनाओं पर बोलते हुए व्यक्ति के विकास पर भी जोर देते थे। उत्तराखंड में विद्यालयों का सबसे ज्यादा उच्चीकरण उसी दौर में हुआ। पहाड़ों से उन्हें बेहद था। आज सहस्त्रताल,
लगाव पवाँलीकांठा और खतलिंग ग्लेशियर दुनिया भर से ट्रेकिंग के शौकीनों को खींच रहे हैं,

indramani badoni jayanti

इनकी सर्वप्रथम यात्राएँ बी जी द्वारा ही शुरू की गई। पहाड़ की संस्कृति और परम्पराओं से उनका गहरा लगाव था । मलेथा की गूल और वीर माधो सिंह भंडारी की लोक गाथाओं का मंचन उन्होंने दिल्ली और बम्बई तक किया । 1980 में वे उत्तराखंड क्रांति दल के सदस्य बन गये। वन अधिनियम के विरोध में उन्होंने पृथक राज्य की अवधारणा को घर- घर तक
पहुँचा दिया 1989 में उक्रांद कार्यकर्ताओं के आग्रह पर उन्होंने सांसद का चुनाव लड़ा। जिस दिन चुनाव का पर्चा भरा गया, बडोनी जी की जेब में मात्र एक रुपया था। संसाधनों के घोर अभाव के बावजूद बडोनी जी दस हजार से भी कम वोटों से हारे।

Leave a Comment